
क्या तुमने देखा है कोई देश जहाँ न प्रेम है, न दुलार?
क्या तुमने देखा है भीड़ जहाँ बस क्रोध और है निराशा का भार?
धोए गए मस्तिष्क, खाली, आँखों में बस शून्य सा अंधकार,
आओ, आओ मेरे संग, यहीं मिलेगा वह संसार।
क्या तुमने देखा है इतना प्रपंच और झूठ का जाल?
मीडिया रीढ़विहीन बेलें, फ़्यूहरर है दैत्यकाल।
संघी और भक्त, विषैले कर्म और चाल,
धन ही उनकी सत्ता की बैसाखी, दिल में ज़हर का उबाल।
यह भूमि जहाँ शोषक, शोषित के दर्द को न्याय बतलाते,
निम्न पुरुषत्व, भद्दी नज़र, नकली छप्पन इंच का सीना दिखलाते।
एक ही दल के खिलाड़ी; चरम केसरिया और चरम हरा मिले,
महिलाओं के हक़ पर आते ही हाथों में हाथ सिले।
रंग अलग, पर वही दानव छिपे हुए,
कमज़ोरों की नसों को छेड़ते, ज़ख़्म गहरे दिए हुए।
एक पीढ़ी और उसका भविष्य बरबाद; घाव गहरे चीख,
यथास्थिति, “मी टू” भाइयों संग, पूँजीपति की रेंगती चीख।
क्या देखना चाहोगे वो भूमि जहाँ टीवी का भ्रम टूट जाता है?
जहाँ फ़्यूहरर जाने से डरता है, अभिनय भी छूट जाता है?
समझो इस मशीनरी को: सभी संस्थान बिक चुके हैं;
पीटर का सिद्धांत अब भी ज़िंदा है: हर कुर्सी पर बैठे होंगे रीढ़विहीन मूर्ख, जिनके फ़ैसले कभी सही न ठहराए जा सकें।
आओ; एक नज़र डालो; हिम्मत कर ठहर कर देखो यहाँ के नज़ारे।
आओ, आओ मेरे संग, मैं ले चलूँगा तुम्हें उस किनारे।