Samrat Chakravarty

खुलती खिड़की से आती रोशनी में

गाँव की बातों की सादगी में

चौपाल में गाई हुई रागिनी में

चलते पानी में नहाई ताज़गी में

वो ज़िंदा है।

हरे-भरे मैदानों की ख़ुशबू में

अधखुले ख़तों की आरज़ू में

रोज़मर्रा के काम की जुस्तजू में

कभी अचानक इत्तेफ़ाक़-ए-रूबरू में

वो ज़िंदा है।

चढ़ती-गिरती लहरों में

रविवार की सुस्त दोपहरों में

रात के जुगनू और अंधेरों में

कभी न सोते शहरों में

वो ज़िंदा है।

एक बेहतर कल की उम्मीद में

सत्य और सत्ता की रीत में

एक क्रांतिकारी गीत में

आने वाली जीत में

वो ज़िंदा है।

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